1 मई मजदूर दिवस पर मजदूरों के हक़ों की लड़ाई के लिए शहीद हुए अनगिनत ओर बेनाम शहीदों को नमन करके सदर बाजार टी पोइंट पर श्रमिको को शुभकामनाएं देते हुए ओंकार सिंह ने कहाकि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी मजदूरों की हालत देश मे चिंताजनक बनी हुई है। सही मायने में मजदूर दिवस नही बल्कि मजबूर दिवस मनाना चाहिए क्योंकि आज भी भारतीय मजदूर स्वेच्छा की बजाए पापी पेट व परिवार पालने के लिए मजबूरी में बंधुआ हालातों में दिहाड़ी कर रहा है। इन 72 वर्षों में कई सरकारे आई कई गई लेकिन मजदूरों का ख्याल अगर आया तो सिर्फ चुनाव के समय ही आया। अपनी जरूरत अनुसार मजदूरों की प्रयोग करके नेताओं ने इनकी हालात सुधारने की कोई कोशिश नही की ओर मजदूर बेचारा अनपढ़-गवार होने के कारण समझते हुए भी पिस्ता ही गया। मोके के हुक्मरान ने कभी भी कोशिश नही की कि इनकी स्तिथि में स्थाई बदलाव आए क्योकि यदि मजदूर ताकतवर होता तो चुनावी मेंढको की रोजी-रोटी पर अंकुश लगता है।
उन्होंने कहाकि पिछले 132 साल से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। 1877 में मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इस हड़ताल में 11,000 फैक्टरियों के कम से कम 3,80,000 मजदूर शामिल हुए जिन्होंने कुर्बानी के पश्चात विजय प्राप्त की। इस तरह पहली मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत हुई। मजदूरों की हालत कई विकसित देशों को छोड़कर अधिकतर अविकसित व विकासशील देशों में आज भी ठीक नही है। भारत जैसे विकासशील देश मे मजदूरों की हालत तभी सुधर सकती है जब हमारे सत्तापक्ष व विपक्ष के नेता अपनी नीति व नीयत से समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे। इस अवसर पर अजय जैन,सुरिंदर सोनी, मदन लाल, अशोक धवन, रमेश यादव, प्राण नाथ वैद, सन्दीप कुमार, अशोक कुमार, कुलदीप कुमार, विक्रम अरोड़ा, धीरज गुप्ता सहित काफी लोग उपस्थित थे।