वर्तमान कालीन वातावरण में जबकि आज प्रत्येक मानव नैतिक रूप से पतित हो दुराचारिता से ग्रसित होने की त्रासदी नाना प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों के रूप मे भुगत रहा है और
जिसके फलस्वरूप परस्पर एकता, शांति व आनंद के स्थान पर द्वि-द्वेष, वैर-विरोध, छल-कपट, लड़ाई-झगड़े,
कटुता व अशांति को पारिवारिक व सामाजिक स्तर पर बढ़ावा मिल रहा है, ऐसे में कुल दुःखमय कष्टप्रदायक परिस्थितियों से शान्ति प्राप्त करने हेतु सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा दिन रविवार, दिनांक 15 मई 2022 को
तहसील नारायणगढ़ के रायवाली में सतयुग दर्शन संगीत कला केन्द्र की शाखा का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर सतयुग दर्शन ट्रस्ट के ट्रस्टी के एल छाबड़ा जी एच सी मुंजाल , विजय सहगल जी, सजन सुरेंद्र ढींगरा , ओम प्रकाश जी राजेश मुकेश , रमन गुलाटी प्राचार्य दीपेंद्र कांत , जगदीप सिंह एवं अन्य अतिथि गण उपस्थित रहे ।
मुख्य अतिथि स्वामी राजेश्वरानंद ने फीता काटकर उदघाटन किया ओर 11हजार रुपये देने की घोषणा की। उद्घाटन समारोह के शुभ अवसर पर बाल, युवा कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से सभी श्रोताओं को मन्त्र-मुग्ध कर दिया।
प्रधानाचार्य दीपेन्द्र कान्त ने अवगत कराया कि सम्पूर्ण भारत में सतयुग दर्शन संगीत कला केन्द्र की 17 अन्य शाखाएं कार्यरत हैं। जिनका उद्देश्य जन – जन तक शुद्ध संगीत का प्रचार-प्रसार करना है। इन सभी शाखाओं में
शास्त्रीय गायन – वादन एवं नृत्य सिखाया जाता है। यहां पर भी शास्त्रीय गायन, गिटार, कैसियो, हारमोनियम, तबला वादन एवं कथक, भरतनाट्यम आदि शात्रीय नृत्य की कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। जिसमें किसी भी उम्र
का, किसी भी वर्ग का कोई भी व्यक्ति संगीत शिक्षा प्राप्त कर सकता है। सतयुग दर्शन ट्रस्ट के ट्रस्टी के एल छाबड़ा जी ने अपने वक्तव्य में बताया कि संगीत से तो सब अवगत ही हैं कि संगीत-विद्या का प्रयोग आदिकाल
अर्थात् वैदिक काल से ही सुदृढ संस्कृति स्थापना हेतु किया जाता रहा है। यह पद्धति मानवता संविधान अनुकूल हर सज्जन के मन, रूचि, आचार-विचार, कला-कौशल को युक्तिसंगत निपुणता प्रदान कर, हर समय काल में सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक रही है। यह संगीत कला ईश्वर की देन है जिसका लाभ प्रत्येक जीव को मिलना चाहिए। आज के इस घोर कलियुग में दिल – दिमाग की शान्ति एवं एकता बनाए रखने के लिए संगीत सीखना अनिवार्य है। इस ज्ञान से भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही स्तर सुधरते हैं। युवाओं को प्रेम से जीवन जीने के लिए समूह में गायन एवं वादन सीखने से एकजुट होकर आगे बढ़ने की कला आती है। जिसकी
आज अत्यधिक आवश्यकता है।
यह भी कहा कि व्यक्ति के चित्त की अवस्था या वृत्ति प्रत्येक परस्थिति में समान यानि अप्रभावित रह शांत बनी रहती है। उसकी बुद्धि विवेकशील एवं निश्चयात्मक बनी रहती है और उसका ध्यान सदा केन्द्रित रहता
है। इस प्रकार मनुष्य सबके प्रति सहानुभूति रखते हुए मन, वचन, कर्म से एक स्वभाव या समान आचरण करता है तथा एक ही रूप में स्थित रहता है। अतः इस शिक्षा का लाभ उठाकर जीवन को सतयुगी बनाएं।
इस अवसर पर पधारे हुए अतिथियों के अतिरिक्त केन्द्र व्यवस्थापक मुकेश मलिक
आदि सजन उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन वरुण छाबड़ा ने किया।
प्रधानाचार्य के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।