चंडीगढ़, 13 नवंबर (शिव नारायण जांगड़ा ) : पंजाबी कल्चरल काउंसिल ने पंजाब सरकार से माँग की है कि राज्य भाषा पंजाबी को सही अर्थों में लागू करने और बनता रुतबा दिलाने के लिए राज्य में प्रांतीय भाषा आयोग की स्थापना करने के साथ-साथ पंजाबी राज्य भाषा (संशोधन) कानून 2008 की धारा 3-ए के अंतर्गत राज्य की नीचे की अदालतों, सभी आयोगों, राजस्व अदालतों और ट्रिब्यूनलों के दफ्तरों समेत अदालती काम-काज भी पंजाबी में किया जाना लागू करवाया जाए क्योंकि इस धारा को लागू करने में अदालतों को दी गई छूट के लिए बहुत लम्बा समय बीत चुका है।
पंजाब के मुख्यमंत्री और शिक्षा एवं भाषा मंत्री को लिखी चिट्ठी में पंजाबी कल्चरल काउंसिल के चेयरमैन स. हरजीत सिंह गरेवाल राज्य पुरस्कार विजेता ने मौजूदा सरकार द्वारा पंजाबी भाषा के बारे में लागू दोनों कानूनों में ताज़ा संशोधनों के लिए बधाई देते हुए माँग की है कि अन्य राज्यों की तजऱ् पर पंजाब में भी राज्य भाषा की ठोस रूप से प्रफुल्लता, अनुसंधान और विकास के लिए बहु-सदस्यीय प्रांतीय भाषा आयोग कायम किया जाए और पंजाबी भाषा को गंभीरता से ना लेने वाले कसूरवार अधिकारियों/कर्मचारियों, अदालतों, आयोगों, राजस्व अदालतों, ट्रिब्यूनलों और शैक्षिक संस्थाओं को कानून अधीन सज़ा सुनाने के लिए जल्द फ़ैसले हो सकें।
मातृ-भाषा को प्रफुल्लित करने के लिए प्रयासरत स. गरेवाल ने यह भी माँग की है कि समय-समय पर राज्य विधान सभा या सरकार द्वारा बनाए जाने वाले बिल, कानून, अध्यादेश, आदेश, नियम, उप-नियम और निर्देश आदि पंजाबी भाषा में भी तैयार और प्रकाशित करने के लिए सरकार द्वारा लिखित हिदायतें जारी की जाएँ। इसके अलावा समूह विभागों को अपनी-अपनी, वैबसाईटें गुरमुखी भाषा में तैयार करने के लिए समयबद्ध किया जाए और ऐसा न करने की सूरत में सम्बन्धित विभागों के जि़म्मेदार अधिकारियों को पंजाब सिविल सेवाओं के नियमों अधीन चार्जशीट किया जाए।
सरकारी स्तर पर गुरमुखी लिपि का प्रयोग को गंभीरता से ना लिए जाने से निराश स. हरजीत सिंह गरेवाल ने कहा कि सरकार और प्रशासन द्वारा अक्सर पंजाबी में दफ़्तरी लिखा-पढ़ी करने से कान कतराए जाते हैं जिस कारण राज्य भाषा की प्रफुल्लित करने के लिए और पंजाबी में काम ना करन वाले अधिकारियों/कर्मचारियों समेत मातृ भाषा को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ाने से बागी शैक्षिक संस्थाओं के खि़लाफ़ कार्रवाई करने के लिए जि़म्मेदार राज्य स्तरीय अधिकृत कमेटी समेत जि़ला स्तरीय अधिकृत कमेटियों का साल 2016 के बाद गठन ही नहीं किया गया। इन दोनों किस्मों की कमेटियों की कभी भी बैठक नहीं हुई जबकि राज्य स्तरीय कमेटी ने साल में दो बार और 22 जिलों में गठित कमेटियों द्वारा हर दो महीने के बाद बैठक की जानी चाहिए थी। इसी वजह के कारण राज्य सरकार द्वारा 13 साल पहले लागू हुए दोनों पंजाबी कानूनों को निचले स्तर पर सही मायनों में अमली जामा पहनाने और पंजाबी में काम ना करने वाले सरकारी बाबूओं और कसूरवार शैक्षिक संस्थाओं के खि़लाफ़ बिल्कुल भी चैकिंग नहीं हो सकी, जिस कारण नई पीढ़ी के छोटे बच्चों और भर्ती हो रहे नए अधिकारियों/कर्मचारियों में पंजाबी बोलने, पढऩे और लिखने के प्रति रुचि दिन-ब-दिन घटती जा रही है।
राज भाषा को प्रफुल्लित करने के लिए दिए गए सुझावों में काउंसिल के चेयरमैन ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि वह पंजाब राज्य भाषा (संशोधन) कानून 2008 और पंजाबी एवं अन्य भाषाएं सीखने कानून 2008 में और आवश्यक प्राथमिक और अनिवार्य संशोधन की जाएँ, जिससे गुरूओं, भक्तों और पीरों द्वारा दी गई इस ऐतिहासिक और गौरवमयी भाषा को हर स्तर पर प्रफुल्लित और विकसित किया जा सके।
इस चिट्ठी में पंजाबी कल्चरल काउंसिल ने यह भी माँग की है कि चण्डीगढ़ समेत पंजाबी बोलने वाले अन्य इलाकों और राज्यों में पंजाबी भाषा को उसका पहली भाषा या दूसरी भाषा के तौर पर बनता रुतबा दिलाने के लिए सरकार द्वारा ठोस हल किया जाए, जिससे करोड़ों पंजाबियों की भावनाओं और उमंगों की पूर्ति हो सके। इसलिए पंजाब के राज्यपाल और चण्डीगढ़ के प्रशासक समेत पंजाबी भाषाई इलाकों के मुख्यमंत्रियों, शिक्षा और भाषा मंत्रियों समेत मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर सरकारी स्तर पर पंजाबी को बनता रुतबा देने, शैक्षिक संस्थाओं में पंजाबी पुस्तकें देने, पंजाबी अध्यापकों और लैक्चररों समेत दफ्तरों में पंजाबी लिखा-पढ़ी करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की भर्ती शुरू कराने के लिए ज़ोर दिया जाए।
सरकारी स्तर पर राज्य भाषा की प्रफुल्लित और अनुसंधानों के प्रति अनदेखी पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए स. गरेवाल ने चिट्ठी में बताया कि पंजाबी भाषा के विकास, अनुसंधान, लागूकरण और आधुनिक रास्ते पर विकसित करने के लिए स्थापित किए गए भाषा विभाग में पिछले ढाई दशकों से खाली पद भरे ही नहीं गए और बाकी सेवा-मुक्ति के कारण खाली हो रहे हैं। यहाँ तक कि नई तर्कसंगत (रैशनेलाईजेशन) नीति के अंतर्गत विभाग में दर्जनों पद ख़त्म कर दिए गए हैं। सैंकड़ों लेखकों की पुस्तकें प्रारूप धूल में बेकार पड़े हैं, जिनकी छपाई के लिए विभाग के पास बजट ही नहीं और विशेष उपलब्धियों के बदले नामवर लेखकों और विभिन्न शख़्सियतों को दिए जाने वाले सालाना शिरोमणि अवॉर्ड भी बजट के बिना प्रदान नहीं किए जा रहे।
साल 2009 में रूपनगर की जि़ला भाषा अधिकृत कमेटी के चेयरमैन रहे तत्कालीन विधायक और अब मुख्यमंत्री स. चरणजीत सिंह चन्नी के बारे में काउंसिल के चेयरमैन स. गरेवाल ने कहा है कि पंजाबी भाषा के कद्रदान स. चन्नी के नेतृत्व अधीन उस कमेटी द्वारा बढिय़ा कार्य किए गए थे, जिस कारण पंजाबी भाषा की बेहतरी के लिए अब वह स्वयं मौजूदा शिक्षा और भाषा मंत्री के साथ विशेष बैठक करके दिन-ब-दिन दम तोड़ रहे भाषा विभाग पंजाब को अपेक्षित बजट जारी करने और खाली पड़े सभी पद तुरंत भरने की मंज़ूरी देने जिससे मातृ-भाषा के प्रसार, प्रचार और प्रफुल्लित के लिए सही अर्थों में सेवा की जा सके।
उन्होंने सुझाव दिया है कि पंजाबी भाषा का देश और विदेशों में प्रसार, प्रचार और विकास करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की पंजाबी कॉन्फ्ऱेंसें हर साल करवाई जाएँ। इसके अलावा हर साल नवंबर महीने को पंजाबी माह या पन्दरवाड़े के तौर पर मनाने के लिए राज्य के समूह विभागों द्वारा बेहतर और योजनाबद्ध ढंग से महीना भर चलने वाले प्रोग्राम बनाए जाएँ, जिसमें हर वर्ग और सभी कर्मचारी शामिल हों। ‘‘पंजाबी बोलो, पंजाबी सीखो, पंजाबी पढ़ो, पंजाबी लिखो’’ के बोर्ड हर सरकारी और अर्ध-सरकारी दफ्तरों में लगवाए जाएँ।
काउंसिल के चेयरमैन स. गरेवाल ने यह भी माँग की है कि पंजाब में वाणिज्य और व्यापार करने के लिए लागू कानूनों में संशोधन करके सभी दुकानों, व्यापारिक संस्थाओं, मनोरंजन स्थान आदि पर सूचक बोर्ड पंजाबी में भी लगाने को अनिवार्य बनाया जाएँ और हर फर्म/संस्थान द्वारा ग्राहकों/उपभोक्ताओं के लिए अपने उत्पादों के लेबल और प्रयोग के बारे में जानकारी देते हुए पर्चे पंजाबी में भी मुहैया करवाए जाएँ।
उन्होंने यह भी माँग की है कि पंजाब दुकानों और व्यापारिक स्थापना कानून, उद्योग स्थापना कानून, दवा और श्रृंगार कानून समेत निवेशकों, बैंकों और अन्य सेवाओं सम्बन्धी आवश्यक कानूनों में संशोधन करके पंजाब के उपभोक्ताओं, ग्राहकों और सेवाएं लेने वाले निवासियों के लिए अंग्रेज़ी के साथ पंजाबी का भी प्रयोग करने के ख़ातिर लाइसेंस की शर्तों में यह मद जोड़ी जाए। इसी तरह शैक्षिक संस्थाओं को ‘कोई ऐतराज़ नहीं (एनओसी) देने और रियायती कीमतों पर प्लॉट, बुनियादी सुविधाएं देने और कर माफ करने के एवज़ में संस्थाओं के अंदर और बाहर पंजाबी में भी सूचना बोर्ड लगाने की शर्तें शामिल की जाएँ।