करवाचौथ के त्योहार को ले कर ब्याहता ज़नानाे समेत कुँवारी लड़कियों में भी भारी उत्साह देखने को मिल रहा है। करवाचौथ मौके ज़नानाे 16 श्रंगार करके ख़ुद को सजाउंदियें हैं। इस दिन ज़नानाे सुबह उठ कर भोर खाने के बाद अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरे रीति -रिवाज़ों के साथ इस्तेमाल कर रखतीं हैं। भारतीय संस्कृति में ज़नानाे के 16 श्रंगार करन का ख़ास महत्व होता है। ब्याहता जब तक 16 श्रंगार नहीं करती तब तक कुछ कमी सी रहती है। करवाचौथ के व्रत को करके एक तरफ़ जहाँ पति -पत्नी में प्रेम और नज़दीकियाँ आतीं हैं, वहां दूसरे तरफ़ परपंरावें को भी निभाया जाता है।
जानो कौन से हैं 16 श्रंगार
करवाचौथ के व्रत पर ज़नानाे सिर से ले कर पैरों तक पूरा श्रंगार करती हैं। बिन्दी, सिन्दूर, चूड़ियाँ, बंद होें, हेयर असैसरीज़, पट्टा, पायल, इत्र, बाज़ूबंद और हार, नथ, मांग टीका, ब्याहता का जोडा आदि श्रंगार में आता है। इन 16 चीजों के साथ सज्जन पर ज़नानाे का श्रंगार पूरा होता है, जिस के साथ ज़नानाे की ख़ूबसूरती को चार -चाँद लगते हैं। श्रंगार करके ज़नानाे अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रख कर गोरी माँ की पूजा करती हैं।
करवाचौथ पर क्या है 16 श्रंगार का ख़ास महत्तव….
16 श्रंगार का महत्व सिर्फ़ -सज्जन संवरन के साथ नहीं बल्कि इस के साथ ज़नानाे की सेहत पर भी बढ़िया प्रभाव पड़ता है। श्रंगार करन के साथ पति -पत्नी के प्यार में विस्तार होता है। समय के बदलाव के साथ रोज़मर्रा की 16 श्रंगार करन का समय न मिल पावे परन्तु करवाचौथ के दिन पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रख कर गोरी माँ की पूजा करके उन का आशीर्वाद हासिल करन का फल मिलता है।
मांग में सिंदूर भरना
मांग भरना ज़नानाे के ब्याहता होने का प्रतीक है। चुटकी भर सिंदूर के साथ दो लोग जनमों -जनमों के साथी बन जाते हैं। शास्त्रों में ब्याहता की मांग भरने के संस्कार को समुंगली क्रिया कहते हैं। शारीरिक विज्ञान अनुसार सिंदूर में पारे जैसी धातू अधिक होने के कारण चेहरे पर झूरड़ियें नहीं पड़तीं हैं।
मंगलसूतर
भारती परंपरा मुताबिक ज़नानाे को अपना गला कभी खाली नहीं रखना चाहिए। मंगलसूत्र में काले रंग के मोतियों की लड़ी में लॉकेट या मोर की हाज़िरी ज़रूरी मानी जाती है।
बिन्दी लगाउणा
मत्थे पर लगी हुई बिन्दी जहाँ ज़नानी को आकर्षक बनाती है, वहां पति को भी बहुत प्यारी लगती है। बिन्दी लगाने वाले स्थान पर ईश्वर ऊर्जा के रूप में हमारे में इकठ्ठा हुए संस्कार क्रेंदित होते हैं। जो दिमाग़ को ऊर्जा प्रदान करते हैं। बाज़ार में स्टोन वर्क, कलरफुल्ल समेत कई तरह की बिन्दियें हैं।
झांजरां
घर की बहु को ग्रह लक्ष्मी कह कर पारिभाषित किया जाता है। चाँदी के साथ बनीं झाँझरों के घुंघरू की छम -छम पूरे परिवार की शान्ति को बना कर रखने में ग्रह लक्ष्मी को सहयोग करती है। माना जाता है झांजरा को सोनो में बनवा कर पहनना उचित नहीं है, क्योंकि सोना माँ लक्ष्मी जी का प्रतीक है। सोने को शरीर के उप्परी हिस्से में तो धारण किया जा सकता है परन्तु पैरों में नहीं।
कज्जल
जनानियें की आँखें को अलग -अलग कवियों ने मछली और तीखी आँखों का नाम दिया है। काजल ज़नानाे को अशुभ नज़रों बचाता है और आँखों की सुंदरता को चार -चाँद लगा देता है। आजकल काजल के साथ आई -लाईनर लगाने का भी रिवाज़ है, जो हरे, नीले ब्राउन और काले रंग में मिलते हैं।
चूड़ियाँ और कंगन
चूड़ियें मन की चंचलता को दिखातीं हैं तो वहां कंगन माताएं में जज़्बा पैदा करता है। इस लिए कंगन दुलहणों का श्रंगार और चूड़ियाँ लड़कियों का श्रंगार माना जाता है। मार्केट में काँच, प्लास्टिक और मेटल में बहुत सी चूड़ियाँ उपलब्ध हैं।
गज्जरा
वालें में गजरा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। ज़नानाे के बालों में लगा गजरा उस की ताज़गी और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। फ़ैशन के दौर में ज़नानाे बाल खोल कर रखतीं हैं, जबकि शास्त्रों अनुसार इस को अशुभ माना जाता है। ताज़े फूलों के गजरों के इलावा नकली फूलों के गजरे भी बाज़ार में मिलते हैं, जिन का प्रयोग कई बार की जा सकती है।
बिछूआ
दोवें पैरों के बीच की 3उंगलियों में बिच्छू पहना जाता है। सोनो का टीका और चाँदी के बिछूए पहनने साथ सूरज और चंद्रमा दोनों की कृपा बनी रहती है। यह शरीर के एक्युप्रेशर का काम करते हैं। पैर की तलों से ले कर नाभि तक की सारी नाड़ियाँ और मासपेशियाँ की पक्कड़ बनाई रखते हैं।
महन्दी
महन्दी भी 16 श्रंगार का मुख्य हिस्सा है, जिस से बिना ज़नानाे का श्रंगार अधूरा है। मान्यता मुताबिक मेहंदी का रंग जितना बढ़ हाथों पर चढ़ता है, लड़की को उस के पति और ससुराल परिवार से उतना ही अधिक प्यार मिलता है। घरों में किसी तरह का कोई त्योहार या पार्टी हो तो ज़नानाे मेहंदी ज़रूर लगाती हैं।
कमरबन्द
इस को तडागी भी कहा जाता है। अच्छी सेहत के लिए यह सब से उत्तम है। इस को पहनने साथ शरीर में चुस्ती आती है। यह बड़ी उम्र में मासपेशियाँ में खिंचा और हड्डियों में दर्द को कंट्रोल करता है।
बाजूबन्द
कुझ इतिहासकारों मुताबिक बाज़ूबंद मुगलकारों की देने है। पौराणिक कथाएं में इन की खूब चर्चा मिलती है। सोने, चाँदी और मोतियों के साथ बने बाज़ूबंद को विवाह के समय दूल्हे पक्ष की तरफ से दुल्हन को पहनायआ जाता है।
नत्थ
सुहागण ज़नानाे के लिए नथ या लौंग पहनना शुभ माना जाता है। परंपरा मुताबिक इस का आकार बड़ा या छोटा होता है।
कान की वालियां
कन्न की दौड़ूँ ज़नानाे की नाभी से ले कर पैर के तलवे तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाउंदी है। बुज़ुर्गों मुताबिक यदि ज़नानाे के नाक और कान में छेद न हो तो उसे पुजारी दौरान बढ़ दुख सहना पड़ता है। सोनो की वाली पहनना शुभ माना जाता है।