बाबा विशकरमा को ‘काम का देवता ’ कहा जाता है। महाभारत और पुराणों में देवतों का ‘मुख्य इंजीनियर ’ भी बताया है। माना जाता है कि ‘सोनो की लंका ’ का निर्माण भी विशकरमा ने किया। विशकरमा देवतों के मकान ही नहीं, बल्कि उतना की तरफ से इस्तेमाल करे जाते सस्तर और अस्तर भी यही बनाता है। स्थापत्य उपवेद जिस में दस्तकारी के हुनर बताए हैं, वह विशकरमा का ही रचा हुआ है। महाभारत में इस की बाबत इस तरह लिखा है, ‘देवतों का पत, गहने घड़ने वाला, बढ़िया कारीगर, जिस ने देवतों के रथ बनाऐ हैं, जिस के हुनर और पृथ्वी खड़ी है।
आज के समय अंदर भी यह बने हुए डैम, मीलों, गगनचुम्बी इमारतें, रेलवे लाईनों, पहाड़ों में खुदियें हुई सुरंगों और ओर कई प्रकार के हथियार और इतना सब की उसारी के लिए इस्तेमाल करे गए औज़ार, यह सब बाबा विशकरमा की कला की ही देने है।रामायण में लिखा मिलता है कि विशकरमा आठवें वश प्रभात का पुत्र लावनयमती के पेटों जन्मा, इस की बेटी संजना का विवाह सूर्य के साथ हुआ था, परन्तु जब संजना सूर्य का तेज सह न सकी तो विशकरमा ने सूर्य को अपने ख़राद पर चढ़ा कर उस का आठवां भाग छिलका दिया। जिस से सूर्य की तपस् कम हो गई।सूर्य के छिलका से विशकरमा ने विशनूं का चक्कर, शिवजी का त्रिशूल, कार्तिकेय की बर्छी और ओर कई देवी देवतों के सस्तर बनाऐ।
जगन्नाथ का बुत भी विशकरमा की दस्तकारी का कमाल है। यह जगन्नाथ विशनूं और श्री क्रिशन जी की एक ख़ास मूर्ति है, जो बंगाल और हिंदुस्तान के कई ओर स्थानों पर पूजा करी जाती है, परन्तु उड़ीसा में फौज के सुसत समुद्र के किनारे ‘पुरी में इस की बहुत ही मान्यता है, कई यात्री बाहर के देशा से वहां जाते हैं, विशेश करके यह लोग रथ यात्रा के दिनों में वहां बहुत भारी जुलूस के रूप में संचित होते हैं। जो आसाढ़ सूद पर उठाया हुआ दो को मनायी जाती है। इस समय जगन्नाथ की मूर्ति को रथ में बिठाउंदे हैं, जो 16 पहिया का 48 फुट ऊँचा है, भक्त लोग इस रथ को खींचते हैं।
बलराम का रथ 14 पहिया और 44 फुट ऊँचा, भरत का 12 पहिया का 43 फुट ऊँचा, इतना दोनों में दोनों की मूर्तियाँ रखी जातीं हैं, पुराने समय बहुत लोग रथ के पहिया नीचे आ कर मरने से मुक्ति हुई मानते थे। ‘स्कन्दपुराण ’ में जगन्नाथ की बाबत एक अनोखी कथा है कि जब श्री क्रिशन जी को ‘सह ’ शिकारी ने पैर में तीर मार दिया तो उन का शरीर कई दिन एक ब्रिछ के नीचे पड़ा रहा। कुछ समय के बाद किसी प्रेमी ने असथियें संदूक में डाल कर रख दीं, उड़ीसा के राजे इन्दरदयुमन को विशनूं की तरफ से हुक्म हुआ कि जगन्नाथ का एक बुत बना कर वह असथियें उस में स्थापन करे।
राजा इन्दरदयुमन ने बाबा विशकरमा को प्राथना की तो राजो की प्राथना मान कर विशकरमा ने देवतों का मिस्त्री बुत बनाने के लिए एक शर्त और तैयार हुआ कि अगर कोई बनती हुई मूर्ति को मुकम्मल हुई बिना पहले ही देख लेगा तो मैं काम वहां ही छोड़ दूँगा।
ओर कोई चारा नहीं था, इस लिए राजा इन्दरदयुमन यह शर्त मान गया। बुत बनते – बनते पंद्रह दिन बीत गए। राजा ओर इंतज़ार न कर सका और बाबा विशकरमा के पास जा पहुँचा और विशकरमा ने काम वहां ही छोड़ दिया। जगन्नाथ का बुत बिना हाथों, पैरों पर आँखों के ही रह गया। राजा इन्दरदयुमन ने ब्रह्मा आगे प्राथना की तो ब्रह्मा ने उस बुत को हाथ, पैर, आँखें पर आत्मा बख्स कर अपने हाथों प्रतिशटा करके जगतमानय स्थापित करा। इतहास में लिखा मिलता है कि जगन्नाथ का मंदिर राजा अनंतवरमा ने बनाया है, जो सन 1076 से सन 1147 तक गंगा और गोदावरी के मध्य राज करता था।
इस मंदिर का बाहर का अहाता 665 फुट लंबा, 644 फुट चौड़ा, चारदीवारी 24 फुट ऊँची है और मंदिर की ऊँचाई कलश तक 192 फुट है। दीवाली से अगले दिन हाथों कंमकार करन वाले सब मिस्त्री चाहे, वह राज मिस्त्री हैं, लकड मिस्त्री हैं, ख़रादें हैं या बड़ी – बड़ी वरकशापों के मिस्त्री सब विशकरमा दिवस और बाबा विशकरमा की पूजा अर्चना करके श्रद्धा के फूल भेंट करते हैं।