अम्बाला :- शहीदे-ऐ-आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव जी के शहीदी दिवस पर सभी शहीदों को नमन करने के लिए किसान संगठन द्वारा गांव दौराना में आयोजित कार्यक्रम में पहुचने के अवसर पर ओंकार सिंह ने कहाकि 1931 में आज ही के दिन शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। आजादी के इन मतवालों का जिक्र जब भी होता है तो हर भारतीय का सीना फक्र से चौड़ा और आंखें गर्व से नम हो जाती है। उम्र के उस पड़ाव जहां लोग अपने भावी जीवन के सपने देखते हैं वहां भारत माता के इन लालों ने आजादी से मोहब्बत करके मौत को अपनी दुल्हन बना लिया इसलिए ही स्वतंत्रता से इश्क करने वाले शहीद भगत सिंह का नाम कभी अकेले नहीं लिया जाता, उनके साथ राजगुरु और सुखदेव का भी जिक्र होता है। सांडर्स मर्डर और एसेंबली बम कांड में दोषी भगत सिंह व साथियों को अंग्रेज हकूमत ने माहौल खराब होने के डर से निर्धारित समय से 12 घण्टे पूर्व ही शाम 7 बजे फांसी पर लटका दिया था। फांसी दिए जाने के 2 घण्टे पहले भगत सिंह से उनके वकील प्राण नाथ मेहता ने पूछा कि क्या आप देश को कोई सन्देश देना चाहोगे ? भगत सिंह ने कहा ” सिर्फ दो सन्देश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद ” आज देश व प्रदेश में जिस तरह का साम्प्रदायिक व राजनीतिक माहौल व्याप्त है, जातिगत व धार्मिक टिप्पणियों के सहारे चुनावी माहौल तैयार किये जाते हैं, हर तरफ झूठ का ही बोलबाला है, सत्ता हासिल करने के लिए आज के राजनेता किसी भी हद तक गिर सकते हैं। झूठ व फरेब का प्रचार जोरों पर है ऐसे में भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव व उन जैसे अनगिनत शहीदों की आत्मा आज जरूर ग्लानि महसूस करती होगी कि हमने क्या इसके लिए आजादी प्राप्त करने को अपने प्राण न्योछावर किये थे ? देश के युवा तो आज भी इनकी शहादत से प्रेरणा ले रहे हैं लेकिन हमारे चंद नेता कब इससे सुध लेंगें यह विचारणीय तथ्य है। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम जाति, वर्ण, धर्म, अमीर, गरीब की सभी दीवारें गिरा कर परस्पर प्यार, मोहब्बत, भाईचारा बना कर देश व प्रदेश को विकास व उन्नति के पथ पर अग्रसर करेंगे।