September 13, 2023 (प्रेस की ताकत ब्यूरो)
हाल ही में संपन्न हुए जी-20 आयोजन की ‘शानदार सफलता’ के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है। यह बात अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक भी यह बात स्वीकार कर रहे हैं कि कुछ सदस्य देशों के विरोध के बावजूद इस सम्मेलन में एक ‘सर्वसम्मत’ सामूहिक विज्ञप्ति जारी की जा सकी। भारत से लेकर अमेरिका तक के कॉरिडोर का मुद्दा हो या रूस-यूक्रेन का मुद्दा या फिर अफ्रीकी यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाने का मामला, इन सबको भारत की दृष्टि से जी-20 की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में ही गिना जायेगा। जहां तक इस पूरे आयोजन का सवाल है, निश्चित रूप से यह भव्य और शानदार था। मज़ाक में ही सही, पर कहा जा रहा है कि जी-20 के आगामी मेज़बान के लिए आयोजन की यह भव्यता एक बड़ी चुनौती बन जायेगी।
दुनिया भर के मीडिया कर्मी इस सम्मेलन को कवर करने के लिए आये हुए थे। सबके पास पूछने के लिए कुछ था। खासकर दुनिया के इतने बड़े-बड़े नेताओं का सम्मेलन मीडिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। उम्मीद की गयी थी कि सम्मेलन की संयुक्त विज्ञप्ति के जारी किये जाने के अवसर पर राष्ट्राध्यक्षों की द्विपक्षीय वार्ताओं के बारे में बड़े नेता मीडिया से मुखातिब होंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। और कहा यह जा रहा है कि सम्मेलन के मेज़बान राष्ट्र भारत ने ऐसा कुछ होने नहीं दिया। भारत-अमेरिका की द्विपक्षीय वार्ता के बाद मीडिया को बहुत उम्मीद थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री सामूहिक रूप से मीडिया को संबोधित करेंगे- फिर चाहे यह संबोधन प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान हुए एक-एक सवाल जैसा ही क्यों न हो। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।
यह नहीं बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ आये पत्रकारों को संबोधित करने का अवसर उन्हें नहीं दिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रवक्ता के अनुसार ‘राष्ट्रपति बाइडेन ऐसी प्रेस-वार्ता के लिए तैयार थे, पर मेज़बान राष्ट्र की असहमति के कारण ऐसा हो नहीं पाया।’ अपने मीडिया से राष्ट्रपति बाइडेन ने बात तो की, पर भारत में नहीं, इंडोनेशिया में। वहां पहुंचकर उन्होंने यह कहना भी ज़रूरी समझा कि उन्होंने जी-20 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से हुई बातचीत में प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा का मुद्दा भी उठाया था। भारत की ओर से अभी तक इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है, पर अपने आप में यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है कि भारत और अमेरिका के नेताओं ने इस विषय पर बातचीत की। अमेरिकी राष्ट्रपति ने वियतनाम में जाकर बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से ‘मानवीय अधिकारों, प्रेस की स्वतंत्रता और सिविल सोसायटी के सम्मान’ करने की बात कही थी। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री मोदी जब अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गये थे तब भी वार्ता के दौरान यह मुद्दे उठे थे और बाद में चर्चा का विषय भी बने थे।
यह विस्मय का चिह्न हटना ही चाहिए। प्रेस की स्वतंत्रता और महता जनतांत्रिक व्यवस्था का अभिन्न और ज़रूरी अंग है। न इसकी उपेक्षा होनी चाहिए, न इसका दुरुपयोग। दुर्भाग्य से जी-20 के इस शानदार आयोजन में यह कमी कहीं न कहीं खलने वाली है। जनतंत्र की जननी कहते हैं हम अपने देश को। आयोजन के दौरान राजधानी दिल्ली में इस आशय के ढेरों पोस्टर भी लगे थे। लेकिन स्वतंत्र और सजग प्रेस की यह जनतांत्रिक शर्त कहीं न कहीं अधूरी रह गयी। इस ‘भव्य’ और ‘सफल’ आयोजन के कर्ता-धर्ताओं को यह अवश्य बताना चाहिए कि अमेरिकी पत्रकारों को भी अमेरिका के राष्ट्रपति से बात करने के लिए वियतनाम तक पहुंचने का इंतजार क्यों करना पड़ा? और यह भी कि अमेरिकी प्रवक्ता का यह कहना कितना उचित है कि भारत के प्रधानमंत्री- कार्यालय ने अनुमति नहीं दी थी, अन्यथा राष्ट्रपति बाइडेन तो प्रेस- वार्ता के लिए तैयार थे?